Pahadi ki pukar.

 रतनपुर गांव के बाहरी इलाके में एक ऊंची पहाड़ी थी। इस पहाड़ी की चोटी पर एक पुराना और खंडहर मंदिर था, जिसके बारे में गांव वाले कई रहस्यमयी कहानियां सुनाते थे। वीर नामक एक युवा बालक, जो साहसी एवं जिज्ञासु था, जिस को इस मंदिर में जाने की बड़ी इच्छा थी। गांव वालों ने उसे चेताया कि वहां खतरनाक जानवर और खतरे हैं, लेकिन वीर का उत्साह कम नहीं हुआ।

एक सुबह वीर ने अपने दोस्त करण के साथ पहाड़ी पर चढ़ना शुरू कर दिया। रास्ता पथरीला और कठिन था। घने जंगल से गुजरते समय उन्होंने कई डरावनी आवाजें सुनीं, लेकिन उनका साहस बरकरार रहा। जैसे-जैसे वे ऊपर चढ़ते गए, वातावरण शांत होता गया।

अंततः वे खंडहर मंदिर तक पहुँच गये। मंदिर की दीवारें टूटी हुई थीं और अंदर धूल और कचरा जमा हो गया था। जब वीर और करण ने चारों ओर देखा तो उन्हें एक कोने में एक छोटा सा घायल पक्षी दिखाई दिया। उसका पंख घायल हो गया था और वह फड़फड़ा रहा था। वीर का हृदय करुणा से भर गया। उसने धीरे से पक्षी को अपने हाथों में लिया और उसकी चोट को देखने लगा।




जब करण ने इधर-उधर देखा तो उसे एक टूटा हुआ घोंसला दिखाई दिया, जो संभवतः ऊंचाई से गिरा था। वीर को एहसास हुआ कि पक्षी अपने घोंसले से गिर गया होगा और इसीलिए वह घायल हो गया। उसने तुरंत अपनी जेब से रूमाल निकाला और पक्षी के पंख पर पट्टी बाँध दी।

वे पक्षी के साथ नीचे उतरने लगे। अचानक सड़क पर तेज दहाड़ सुनाई दी और एक क्रोधित तेंदुआ उनके सामने आ गया। वीर और करण डर गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। करण ने एक बड़ा पत्थर उठाया और तेंदुए को डराने की कोशिश की, जबकि वीर वहीं खड़ा रहा और उसने पक्षी को अपनी छाती से लगा लिया।

तेंदुआ कुछ देर तक उन्हें घूरता रहा और फिर जंगल में गायब हो गया। वीर और करण हँसे और तेजी से नीचे उतरने लगे।

लेकिन, इस साहसिक यात्रा में एक दुखद घटना घटी। पहाड़ी से उतरते समय करण का पैर फिसला और वह गहरी घाटी में गिर गया। वीर ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। करण की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।

इस घटना से वीर बहुत दुखी हुआ। उसने अपना बहादुर दोस्त खो दिया था। गांव में शोक की लहर दौड़ गई। वीर को एहसास हुआ कि साहसिक कार्य कभी-कभी भयंकर परिणाम पैदा कर सकते हैं। हालाँकि, उन्होंने करण के साहस और दोस्ती को कभी न भूलने का संकल्प लिया।

 वीर ने पक्षी की बहुत देखभाल की। वह उसे हर दिन अनाज और पानी देता था। कुछ ही दिनों में पक्षी की चोट ठीक हो गई और वह पुनः उड़ने के लिए तैयार हो गया। एक सुबह वीर ने पक्षी को खुले आसमान में छोड़ दिया। पक्षी कुछ देर तक हवा में चक्कर लगाता रहा और फिर उड़ गया। वीर  उसे उड़ता देख बहुत खुश हुए।

करण की याद में वीर ने गांव के बच्चों की मदद और जरूरतमंदों की सेवा करना शुरू कर दिया। उन्होंने हमेशा करण के साहस और करुणा की कहानियों को जीवित रखा। इस तरह भले ही करण इस दुनिया से चला गया, लेकिन उसकी आत्मा वीर के कार्यों में अमर रही।

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